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बुधवार, 28 दिसंबर 2011

बेटी और पेड़....

बेटी और पेड़....


बेटी और पेड़


बेटी बोली पेड़ से, कैसे हो तुम भाई,
हम दोनों ने एक सी किस्मत है पाई,

किस्मत है पाई, दोनों को मारा जाता,
मुझे गर्भ में,तुमको बाहर काटा जाता,

बेटीकी बात सुन, पेड़ ने किया आत्मसात,
दोनों ने किया फैसला,समझाई जाऐ बात,

समझाई जाऐ बात,दिया इंसानों को मश्वरा,
हम दोनों है पृथ्वी की,"नूतनता"और"उर्वरा"

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dheerendra...

10 टिप्‍पणियां:

  1. अच्छी प्रस्तुति .तरु और तनुजा नित नूतन नित नवीन ,जीवन को करते रंगीन .सुख छाया से भरपूर .

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  2. सही कहा, इनकी( पेड़ और माँ ) घनेरी छाव तो सभी चाहते हैं ,पर इनको (न पेड़ न बेटी "भविष्य की माँ") उगाना कोई नहीं चाहता .....यही तो है कलियुग

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  3. सुन्दर प्रस्तुति.....
    आज भारत देश को ऐसी ही सोच रखने वालोँ की आवश्यकता है।

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  4. धीरेन्द्र जी नमस्कार, नव वर्ष की हार्दिक बधाई। आपके प्रयास सफल हो शुभ्कामना।

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  5. हम दोनों है पृथ्वी की,"नूतनता"और"उर्वरा"
    सुन्दर प्रस्तुति

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  6. सुंदर प्रस्तुति.....
    आज युवाओँ को ऐसे ही विचारोँ की आवश्यकता है।
    इंडिया दर्पण की ओर से नववर्ष की शुभकामनाएँ।

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  7. ऐसी रचनाऐ लोगों की सोच जरूर बदलेंगी।
    शुभकामनाओं के साथ बधाई।

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